आपका बूढ़ा संविधान
ये कैसा लोकतंत्र है ये कैसा संविधान है?
सांसदों के भेष मैं ये बैठे हैवान हैं।
एक नए भवन की मानो आज राजपोषी है।
न राष्ट्र है न राष्ट्रपति ये कैसी ग़र्म-जोशी।
न लोक का विपक्ष है न लोक का सवाल है।
न लोक की सुनवाई हो जगह जगह बबाल है।
लाज शर्म राष्ट्र की क़तर क़तर ये खा गए।
बेटियों के चीर हरता नए भवन में छा गए।
तीन रंग ओढे बेठा कौन है वो देखले।
देश जल रहा है, आग चाहे तू भी सेकले।
भ्रस्टाचारी राजनीति, कौरवो की जीत हैं।
कृष्ण (bureacracy) रो रहा है, अर्जुन(Press) भी भयभीत है।
राम लाचार(SC), हनुमान (Agencies) शक्तिहीन है।
देश की लगाम रावण के अधीन है।
संविधान गिर पड़ा है, माता लहुलुहान है।
मज़हबो के नाम बंट गया ये हिन्दुस्तान है।
न मैं एक इंसान हूँ न अब तेरा भगवान् हूँ।
गणतंत्र का षड्यंत्र हूँ एक बूढ़ा संविधान हूँ।
फफक-फफक मैं रो रहा हूँ, तड़प-तड़प में जी रहा हूँ।
धधक-धधक मैं जल रहा हूँ, सिसक-सिसक में मर रहा हूँ।
तिलांजलि वो दे चुके, अब किसको दाग दे रहे हैं।
जीते जी मैं मर गया,अब क्यों संविधान कह रहे हैं।
आपका बूढ़ा संविधान
वरुण पंवार